जय हो
सतयुग हो या त्रेता हर समय हर काल में नारद की भूमिका देखी गयी ... नारद ... नारायण ... नारायण का जाप करने वाला यह भक्त हर काल में द्योतक रहा है ... चुगलखोड़ो का ... जिन पर यकीन करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारकर... विकलांगता का सर्टिफिकेट लेकर... आधे दाम में ट्रेन का सफ़र का मज़ा | पर आप जान लीजिये की हर कोई नारद की भूमिका में नहीं आ सकता ... कइयो के पास अपने से अधिक अपने जमीर का फिक्र है ... तो कई दलाली में इतने डूबे है की उनको और किसी की चिंता नहीं रहती | पर कई ... न न ... सिर्फ कुछ गिने चुने ऐसे है जो सर्व गुण संपन्न है ... इश्वर ने इनकी रचना वीक ऑफ के दिन फुर्सत के साथ की ... कलियुग के सारे गुण विष्णु ने कूट कूट कर इनमे भर दिया | वैसे इनकी पहचान आज की तारीख में करना मुश्किल है पर आपको कुछ टिप्स देता हूँ ... कोशिश कीजिये ... शायद आपके आसपास दिख जाए ... ना दिखे तो पाटलिपुत्र कालोनी के रोड नंबर पांच में जाए ... एक नहीं ... आप गिनते गिनते हैरान परेशान हो जायेंगे |
वैसे इस कलियुगी नारद का चेहरा अंडाकार ... कद में आप ना पड़े ... ये नाटे भी हो सकते है ... कही जगह ये लम्बे भी होते है ... इनकी मूछे अक्सर साफ़ रहती है ... लेकिन कई बार ये लोंगो को भ्रम में रखने के लिए पतले और छोटे मूंछ रखते है ... ये पहचान के भूखे ... और तक़दीर के मारे होते है और इसी कारण काम की जगह भी बेईमानी नहीं छोड़ते ... आप जब इनसे बात करेंगे तो सिद्धांत और संस्कार की जाल में आपको ऐसे उलझा लेंगे की आपका दम निकल जाएगा पर जब इनका असली चेहरा देख ले ... रिपोटिंग में दलाली ... यकीन मानिए ... हम यहाँ उस संस्थान के निदेशक का नंबर छाप दे सकते है ... पर खुलासा का मकसद किसी को जलील करना नहीं वल्कि पत्रकारिता के दलाल को सामने लाना है ताकि वह अपने दलाली से बाज़ आये |
हाँ तो मै कह रहा था की सफ़ेद बाल रखकर खुद को गंभीर मीडिया कर्मी बनने वाले भी इसी श्रेणी में आते है | हालंकि ये लोग चांदी के चम्मच लेकर पैदा हुए है ... नौकरी खुद के टैलेंट पर नहीं झाजी के आरक्षण पर मिल गयी ... एंकर भी बन गए ... और अपनी औकात भूल ... चादर से बाहर पैर निकाल लिए | आपने कभी सीडी या डीवीडी देखा है ... बीच में छेद ... वही कैरेक्टर के ये होते है ... जहाँ रहेंगे वहीँ सारा कुकर्म करेंगे ... थाली क्या .... उसमे भी छेद कर लेंगे ... यकीन नहीं है ... जाकर मिल तो आइये ... पहचान बता दिया ... अब ... हाँ अपने कैरेक्टर के ऊपर एक ब्लॉग भी खोल रखा है ... हाँ याद आया ... अगर इसी पहचान में दाढ़ी वाला मिल जाए तो उस पर भी सौ परसेंट भरोसा मत कर लीजिएगा ... उ तो सबसे आगे ... का कहते है ... चापलूस है ... बेईमानी रग रग में है ... कैसे तो यह कहानी सुन लीजिये ...
बढ़ी दाढ़ी लेकर डाक्टर के यहाँ गया ... डाक्टर आपकी ही तरह था ... फेर में आ गया ... दार्शनिक समझ बैठा ... बिना फीस का इलाज कर दिया ... दोस्ती हो गयी ... बाद में अगले ही दिन से डाक्टर के पास इसका मरीज़ आने लगा ... फ्री में इलाज़ ... डाक्टर ने पता किया ... अरे भाई ... इ तो फीस अपने लेता था और रिलेटिव बनाकर इलाज़ करता था ... समझ गए |
जय हो
bhai yeh kiski jikr kar rahe hai aap...clear nahi ho raha hai
जवाब देंहटाएंkyaa baat kahi ye to bilkul satik baithtaa hai hamaare
जवाब देंहटाएंyahaa ke ek mathadhish par.......