गुरुवार

मीडिया की लक्षमण रेखा

जय हो

बिहार के पत्रकार नितीश कुमार के सत्ता में वापसी को अपनी जीत मानते हैं ! क्या किसी एक दल के प्रति पत्रकारों का यह समर्पण लोकतंत्र को शोभा देता है ? सवाल पहले इसलिए खडा कर रहा हूँ ताकि आपको यह समझ में आ जाये की पत्रकारिता ... बिना किसी विशेषाधिकार के लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया तो पारदर्शिता की वजह से ! लोकतंत्र के समर्थको ने यह मान लिया था की पत्रकार इमानदारी का पट्टा लगाकर आयेंगे और ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर की परम्परा को आगे बढ़ाएंगे ! पर सुबिधा भीगी समाज में डाक्टर और वकील की तरह फीस वसूलने वाले चौथे स्तम्भ समाज के कारिंदे इस तरह अपने इरादों को घायल करा लेंगे किसी को उम्मीद नहीं थी !
नितीश कुमार की सत्ता वापसी की घटना को बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में जनता की मनोदशा को दर्शाती है ... वोटर के सचेत होने और उन्हें जिज्ञासु होने की पहचान कराती है पर इसको लेकर गुणगान ठीक नहीं है !इससे तानाशाही प्रवृति को बल मिलता है ! इसी लिए सचेत अब पत्रकारों को होना है ... जनता को नहीं !
आज की तारीख में यह खबर किसी अखबार या टीवी पर मैंने नहीं देखा की न्यायपालिका का एक सदस्य के साथ नितीश कुमार के इसी राज्य में घटना हुई ... लूटपाट करने वालो ने नितीश कुमार के इलाके में गाडी रोक कर घटना को अंजाम दिया ... घायल होकर जुडिशियल मजिस्ट्रेट पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती हैं और खबर से पत्रकार दूर हैं ! धन्य हैं बिहार के पत्रकार कि नितीश कुमार की जीत के जश्न में इतना डूबे हैं कि खबर से ही दूर हो गए !
नितीश कुमार जीते या लालू यादव ! हमें तो सिर्फ अन्धो के शहर में आइना बेचना है ! अपने फायदे के लिए सत्ता के सामने सरेंडर का नतीजा इसी पटना के पत्रकार देख चुके है ! लालू यादव ने कितने पत्रकारों के घरवाली को मास्टरनी बना दिया ... सरकार और विधान सभा में नौकरी दे दिया ... लेकिन जब लालू यादव तानाशाही पर उतरे तो पत्रकार खिलाफ नहीं लिख पाए !
रेखा सामने है ... इसे आप तय करें कि यह लक्षमण रेखा है या ...?

जय हो