मंगलवार

भैय्या जी स्माइल ...

जय हो

आजकल भाई जी के गृह नक्षत्र पर शनि की वक्र दृष्टि है इस कारण से भाई जी जिस काम को हाथ में लेते हैं उसमे तीन तेरह हो जाता है ... अब देखिये ने भाई जी ने गाँधी मैदान में अपने दोस्त के बुलावे पर जैसे ही कदम रखा की सुर के बदले संग्राम छिड़ गया ... भाई जी खाली मंच से बाईट ही देते रह गए और कबाड़ा हो गया ... बेचारे बनारस वाले तिवारी जी का बोलेंगे ... असल में बनारस वाले तिवारी जी तो इस लिए बुला लिए कि कुछ भी हो भाई जी जैसा गरम दिल वाला भैया नहीं मिलेगा ... सो गाँधी मैदान में जब दोनों मिले तो फोटोग्राफर ने कहा ... भैया जी स्माइल ...|और भाई जी का स्माइल ऐसा कि रुलाई बढ़ा दिया तिवारी का... ऐसा बंटाधार किया कि बेचारे तिवारी ... सोच रहे हैं कि दोस्त के कारण हुआ कि खरमास वाले विद्रोही नाम वाले पत्रकार की वजह से |

अब देखिये ना बेचारे विद्रोही नाम वाले का... का दोष ... खरमास और मलमास नहीं मानते ... मत मानिए ... लेकिन बेचारे मुत्तु का जो किये सो ठीक नहीं किये ... पानी पी पी के हचक हचक के रोया बेचारा ... हो गया ना ... इधर जोइनिंग और उधर ... कुर्सी तोड़ हंगामा ... ले बलैया ... कुर्सी ही नहीं टावर को भी चितंग कर दिया ... तिवारी जी खरुवा गए ... अब पंडित को बनारस से बुलवा लिए हैं कि भैया जी का दोष कि विद्रोही टाइप पत्रकार का ... जांचेंगे ... मुत्तु भैया ना हंस रहा है और ना गा रहा है ... खाली अपनी वो वाली अंगुली को चुपचाप निहार रहे हैं ... सा.... पासो लिया और जोवाइनो कर लिया ... देखेंगे ... |

सो अब कथा में रोचक घुमाव ... भैया जी अगले ही दिन प्लेन पकड़ लिए ... और तिवारी की तरफ ना मुड़ने का संकल्प भी लिए है पर तिवारी का अगला दाव भाई जी के लिए कड़ा है ... चैनलवा का दाम पूछ रहा है ... कितना में ... आदमी नहीं खाली सामान का दाम... भाई जी की फट रही है ....ड़ |

असल में भाईजी की समस्या चैनल की कीमत नहीं बल्कि इस चैनल के लिए बाज़ार से उठाया गया पैसा है जिसे वे अभी तक चुका नहीं पायें हैं ! ऐसे में तिवारी के सवाल का जवाब कैसे दें पर छोटा तिवारी अड़ गया है ... चाचा चैनलवा दे दीजिये ... हमरे वाला प्रोग्राम दिखा रहे है ... हम तो नया प्रोग्राम बजरंग वाली दिखायेंगे !

तो इसीलिए तिवारी ने कहा ... हे भैया ... सुर लगाये हम ... संग्राम देखें भाई जी ! जय हो

दरबारे आम हो ... या... पिए 8 पी एम

जय हो

भाई जी की जय हो ... कितना बढ़िया बनाये प्रोग्राम ... झकास ... सीएम को भले ही जनता जनार्दन ने दिया हो जनादेश ... पर आपने तो दावा कर दिया ... दिखाएँगे महफिले सीएम ... दिखाए कहाँ ... दोस्ती का इससे अच्छा पैगाम क्या होगा ... महफिले सी एम ... सी एम यानि मुख्यमंत्री का महफ़िल ... चकाचौंध रौशनी ... छलकते जाम ... घुंघरू की खनखनाहट ... गजरे की महक ... कहाँ दिखाए ...हिम्मत करिए और ... सच दिखने का माद्दा रखिये ... झूठ का प्रोमो क्यों दिखा रहें हैं ... टीटीएम फेल क्या हुआ लग गए ... सच जय हो |

यह मानता हूँ की कुमार के चक्कर में फक्कर बनाने की तैयारी में हैं ... तो बनिए ना ... पर गलत प्रोमो से जनता को आपकी असलियत का पता चलता है ... क्या हुआ जो... सी एम ने आपके राजनितिक सम्पादक को चोपर से उतार दिया ... जीत के बाद आपके चैनल से टिक टैक नहीं किया ... आप ... रह गए कुमार के फेर में ... अब यह झूठ क्यों की पहले के कुमार को सी एम के कहने पर आप ने हटाया ... सी एम को पता भी नहीं है |

ऐट पी एम में अपनी कहानी क्यों नहीं दिखाते ... मैडम आयी ...मिली ... फिर भी ऐठन क्यों ...अपने को संभाल कर रखिये ... आप पर भी नज़र है ... चैनल के लोंगो को पता है की अब आप यहाँ भी फेल हो गए है और चैनल को बनियागीरी पर उतारने की फ़िराक में हैं ...इसीलिए ... गलत स्लोगन के साथ प्रोमो से मैसेज गलत जाता है ... दरबार में वापसी के आपके सारे तिकड़म अब चलने वाला नहीं है ...|

आपके चैनल के लोंगो ने तो कहना शुरू कर दिया है चैनल बिक रहा है ... लोग बहार में दुग्दुग्गी ना बजा दे ... बचिए ... इस कुमार को बताइए कि रे भाई ... इ बिहार है ... तुरते ... फट जाएगा ... इसलिए ठेपी अभिये लगा लो ... कही गृह लग गया ना ... ऐट पीएम भी नहीं मिलेगा ...देसी से ही काम चलाना होगा !धमकी नहीं ... सजेसन है |

जय हो

गुरुवार

मीडिया की लक्षमण रेखा

जय हो

बिहार के पत्रकार नितीश कुमार के सत्ता में वापसी को अपनी जीत मानते हैं ! क्या किसी एक दल के प्रति पत्रकारों का यह समर्पण लोकतंत्र को शोभा देता है ? सवाल पहले इसलिए खडा कर रहा हूँ ताकि आपको यह समझ में आ जाये की पत्रकारिता ... बिना किसी विशेषाधिकार के लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया तो पारदर्शिता की वजह से ! लोकतंत्र के समर्थको ने यह मान लिया था की पत्रकार इमानदारी का पट्टा लगाकर आयेंगे और ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर की परम्परा को आगे बढ़ाएंगे ! पर सुबिधा भीगी समाज में डाक्टर और वकील की तरह फीस वसूलने वाले चौथे स्तम्भ समाज के कारिंदे इस तरह अपने इरादों को घायल करा लेंगे किसी को उम्मीद नहीं थी !
नितीश कुमार की सत्ता वापसी की घटना को बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में जनता की मनोदशा को दर्शाती है ... वोटर के सचेत होने और उन्हें जिज्ञासु होने की पहचान कराती है पर इसको लेकर गुणगान ठीक नहीं है !इससे तानाशाही प्रवृति को बल मिलता है ! इसी लिए सचेत अब पत्रकारों को होना है ... जनता को नहीं !
आज की तारीख में यह खबर किसी अखबार या टीवी पर मैंने नहीं देखा की न्यायपालिका का एक सदस्य के साथ नितीश कुमार के इसी राज्य में घटना हुई ... लूटपाट करने वालो ने नितीश कुमार के इलाके में गाडी रोक कर घटना को अंजाम दिया ... घायल होकर जुडिशियल मजिस्ट्रेट पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती हैं और खबर से पत्रकार दूर हैं ! धन्य हैं बिहार के पत्रकार कि नितीश कुमार की जीत के जश्न में इतना डूबे हैं कि खबर से ही दूर हो गए !
नितीश कुमार जीते या लालू यादव ! हमें तो सिर्फ अन्धो के शहर में आइना बेचना है ! अपने फायदे के लिए सत्ता के सामने सरेंडर का नतीजा इसी पटना के पत्रकार देख चुके है ! लालू यादव ने कितने पत्रकारों के घरवाली को मास्टरनी बना दिया ... सरकार और विधान सभा में नौकरी दे दिया ... लेकिन जब लालू यादव तानाशाही पर उतरे तो पत्रकार खिलाफ नहीं लिख पाए !
रेखा सामने है ... इसे आप तय करें कि यह लक्षमण रेखा है या ...?

जय हो