गुरुवार

एक साल चले डेढ़ कोस


जय हो

भाई जी के चैनल ने एक साल पूरा कर लिया ... जानदार शानदार जलसा के साथ सेलिब्रेट भी हुआ ... ख़ुशी को इज़हार करने के लिए अशोका होटल में पूरा इंतजाम ... मटन ... मुर्गा से लेकर सब कुछ ... सब गरम ... गर्मी इतनी की समय पर एक साल के ब्योरा का क्लिपे नहीं चला ... पर सब बढ़ियाँ इंतजाम ... कमी थी तो भाई जी का ... ना अपने आये और ना लोंगो ने याद ही किया ... अपने में मशगूल रहे सब ... मुर्गा का लात तोड़ते रहे पर भाई जी की याद नहीं आया किसी को ... भाई जी को तो छोडिये ... भाई जी की पसंद के सम्पादक मुकेश कुमार की भी कोई चर्चा नहीं ... चैनल एक साल में मज़बूत हो गया ... बिना ... छोडिये ... ऐसे ही होता है |चैनल है ... भाई जी का पैसा है ... उडाना है ... फूंकना है तो फूंको भाई ... अपने में बाँट लो पुरस्कार ... अपनी पीठ है जैसे मन वैसे ठोक लो ... हम ठोकेंगे तो दिक्कत होगी ... खुलासा नहीं होगा |

तो चैनल एक साल का ... एक साल के ज़द्दोज़हद की कोई चर्चा नहीं ... गेस्ट भी ऐसे जिसे कोई जानता नहीं ... एक दुसरे से पूछते रहे ... बेस्ट परफोरमर कौन ... नैन नक्श वाले ... विनय से विनम्र तक ... कला से शिल्प तक ... बिरहा प्रेमी सम्पादक तक ... खूब बांटे ... तीस गो पुरस्कार आ सब तीसमार खान सब को ... दो महीना पहले आये ... पुरस्कार पाए |पर एक साल में क्या खोये इसकी चर्चा तक नहीं | हैं ना मजेदार ... जायकेदार |

भाई जी का चैनल और भाई जी आये क्यों नहीं ... छोटे भाई जी भी नहीं आये ... भांजा ने कमान सम्हाल रखा था ... सम्हालना भी चाहिए ... बुर गया वंश कबीर का उपजा पूत कमाल | तो भाई एक साल के मौके पर इंतजाम में कोई कमी नहीं ... सामने सबकुछ और ... हिडेन भी रहना चाहिए ... लेकिन चेहरे पर रौनक हिडेन रहने कहाँ दिया ... ठुमक ठुमक वाली चाल और चौरी होती आँखे सब कुछ बयान कर रहा था |

तो भाई जी नहीं आये ... आते तो ... पचा नहीं पाते ... फरेब के जाल को पचा नहीं पाते ... आते तो सब घोषणा भी करा लेता ... तब भाई जी पूछते की भैया प्रेम जी को पुरस्कार आउटपुट का और सम्हाल रहें है इनपुट ... यह तो वही वाली कहावत हो गयी ... देखो रे देखो किस्मत का खेल पढ़े फारसी बेचे तेल |तो भैय्या ... एक साल की पार्टी पर कोई स्माइल नहीं ... सबके चेहरे पर भाई जी के नहीं आने और उनकी चर्चा नहीं होने का गम ... मन मसोस कर मन ही मन सब गा रहे थे ... के दुःख बांटी संग चली के ... का बुझी इ दुनिया ... केकरा के दुःख दरद सुनावे पिजरे वाली मुनिया |

जय हो