सोमवार

दिले बेरहम पत्रकार पार्ट एक

जय हो




विचित्र शहर के सम्पादक की गाथा लम्बी है और मै यह नहीं चाहता कि आप बोर हो जाएँ सो मैंने अब कहानी का रुख एक ऐसे पत्रकार की तरफ कर रहा हूँ जिसने पत्रकारिता में महिला प्रेमी होने में सम्पादक को पीछे छोड़ दिया है ! यह भी अब सम्पादक की स्थिति में आ गया है पर स्नेहा के सानिध्य में ऐसे डूबा है की इसके अन्दर का मटुक सामने आ गया है ! अब आपको सीधे कहानी पर ले चलते है ... भाई को इन्फेक्सन कब लगा यह तो भाई भी नहीं जानता पर जीविशन रोड में काम करते हुए गिन्जन की आदतों ने इसे भी कामुक बना दिया था ! आपको यहाँ बताते चले की गिन्जन सर भी सम्पादक के बहुत बड़े मुरीद रहे और यही कारण रहा कि सम्पादक ने कई बार इन्हें भी फ्रेशर्स भेज सम्मानित किया है !और बाद के दिनों में विचित्र शहर में जब झाजीवा का चैनल आया तो गन्धर्व प्रेमिका के साथ गिन्जन को भी सम्पादकवा नौकरी देने में सफल रहा !

अब इधर उधर नहीं भटकेंगे ... कहानी बताही देते है ! तो भाई पहले दिल्ली में था और सीधे जिविशन रोड आकर टीवी में गिरा ... नौकरी मिल गयी ... जुगाड़ शुरू ... पहले खबर छापने के लिए पांच सौ रुपया फिक्स किया और बाद में ... समझ ही गए होंगे ! तो भाई को पता चला की बिना गर्दन वाले पत्रकार भाई साहब का समय बदल गया और वे समय को पकड़ लियें है सो समय को पाने के लिए भाई ने काफी मेहनत की नौकरी बिना गर्दन वाले पत्रकार जी ने इनको दे दिया पर शर्त ... जुगाड़ ... समझ गए ना ! और भाई का काम बदल गया पहले जुगाड़ ... इसी दौरान सरकार बदली ... विचित्र शहर की गद्दी जात के ही नेता को मिल गया अब का चाहिए ... चारो जगह लड्डू ... दो हाथ में और दो .... ? भाई का समय बदला ... ऐसा बदला की भाई धराम से गिरा ... सीधे भक्ती चैनल वाले साहब के घर ... मज़ा आगया यहाँ तो बिना गर्दन वाले साहब पत्रकार ही सब थे ... ले फिर जुगाड़ ... ऐसा जुगाड़ की इन्द्र भी परेशान ... अरे सब विचित्रे शहर में मिलेगा कि कुछ उपरो ... कैसे छप्पर फार के दिया है हो ... हई रे बाप ... साथे देखे थे चिड़ियाँ खाना में ... एलानियाँ हो ... विचित्र शहर के विशेष जी तो कई बार मुंह में पानी भर के बोले भी ... पर खिलाड़ी जी तो आना जाना शुरू कर दिया था ... सा ............ बभना हई हो ... ! पर सब हाथ मलते रह गए ... पर भाई ने निष्ठां दिखाई छाप्दिया मालिक से लेकर पूर्वज के नाम पर खुलने वाला चैनल में साथे ... देख पड़ोसन जल मरे तो मर जाओ ! तो खेल कबूल ... कबूल कबूल !

जय हो