मंगलवार

नारी नरक की द्वार है ... भुलावे में मत रहियेगा


जय हो

यह सिर्फ एक कहावत नहीं ... मुखौटा लगाए मीडियाकर्मी अक्सर ऐसे अपने सफाई देते आपको मिल जायेंगे पर कभी विचित्र चैनल से मौर्या और फिर देश लाइव तक का सफ़र तय कर चुके जनाब को आपने देखा है ... हर खेल के धुरंधर ... कंप्यूटर से लेकर कैमरामैन और रिपोटर तक की हैसियत वाले इस जनाब का आजकल यही कोट है ... नारी नरक का द्वार है ... पर जनाब नारी से दोस्ती के लिए तड़प रहे हैं | भाई आजकल अपने चैनल में एक एंकर से दोस्ती के लिए क्या नहीं किये ... उसका प्रोग्राम तक संपादित नहीं किया ... मामला गंभीर हो गया ... जनाब अड़ कर भड़क गए ... मामला बॉस तक पहुंचा ... मामला को शांत करने में पसीना बह गया | खैर आजकल जनाब की नज़र उसी के पीछे है और सबसे बड़ी बात यह है जनाब भी शादी शुदा है और तीन बच्चो के बाप भी !

असल में जनाब का यह प्रेम कोई पहला नहीं है जब एक सीडी छाप चैनल में थे तभी उनको यह बिमारी लगी ... रोग इतना गहरा की जनाब वहाँ की एक एंकर के कारण विदा भी हो गए और सीधे गिरे मौर्या में | साफ़ सुथरा छवि तब टूटना शुरू हुआ जब भाई निवेदन के चक्कर में पद गए ... निवेदन की शादी हो गयी ... बेचारे जनाब कहाँ कहाँ नहीं ट्राय किया और इसी दौरान नौकरी भी छोड़ पहुँच गए देश को लाइव करने ... ले भाई यहाँ तो जनाब की नज़र ...?

अब जनाब परेशान हैं की इनको ... कोई चांस नहीं मिलता है ... बॉस लोग अपने चेंबर का इस्तेमाल कर लेते है तो जनाब नाराज़ ... कोई बात नहीं जनाब अब कहते है की ... फलां से दोस्ती करा दो ... और जनाब इंतज़ार में बैठे हैं ...

जय हो

कोई एक मटुक नहीं हैं मीडिया में ... मटुको की कतार लगी है ... सावधान


जय हो

यह कोई हंसने की बात नहीं है ... इसे सीरियस होकर सोचिये ... गंभीर होना कोई गलत नहीं है ... गलती तो तब है जब आप गंभीर होने का नाटक करते है और गंभीरता की खाल ओढ़ कर अपने अन्दर के मटुक को आगे कर खुद पीछे चलते हैं ... हाँ बिलकुल यह आपकी बात हो रही है ... इधर उधर देखने की जरूरत नहीं है ... सिर्फ आपकी बात ... आप भाग नहीं सकते |आप यानी ... तो बताना चाहूंगा की मटुक प्रवृति मीडिया में काम करने वाले पुरुष और महिला दोनों में हैं |अब देखिये ना मटुक प्रवृति के कारण ही कोई कोई कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है और टैलेंट अपने किस्मत को दोषी ठहराता है !

आप कहेंगे की क्या भाषण है यार ...किताब लिख दो नाम अमर हो जाएगा ... मै मानता भी हूँ ... पर ये क्यों नहीं मानते ... महिला है ... प्यार किया ... पहले लोग धोखा में थे ... अच्छा किया मांग भरने लंगी ... पर अगले को तो समझाइये ... कहिये ... गलत दरवाज़े के पीछे क्यों खडा है ... अब आपको क्या लस्ट है... निकल लीजिये ... पर आप मानेगी नहीं मै यह जानता हूँ और आपकी हिम्मत की दाद देता हूँ क्या कलेजा पाया है ... सात साल के प्यार को पाने के बाद भी ... |

जी यह पूरा वाकया पटना के गंगा किनारे वाले चैनल के ऑफिस का है ... आजकल प्यार का रोग वहाँ सबको लग गया है ... क्या साहेब क्या छोटे ... सबको एक प्रेमिका चाहिए ... बेचारे शील जी ... शील की रक्षा में ही दम निकल रहा है ... पर मातहत मानने को तैयार नहीं ... अरे साहब मातहत को छोडिये ना वो है ना मु नाम वाला रिलेटिव ... देखिये ना उ भी फेर में है ... मस्ती चढ़ गया है ... शादी शुदा के चक्कर में लगा है ... अब आप पूरा माजरा समझ गए होंगे की खेल है या ...?

यह मानना पडेगा बंधू कि की विश्वामित्र की तपस्या भंग करने वाली मेनका आज रूप बदलकर घूम रहीं है ... कभी जू ...ली बनकर तो कभी ने ... बनकर तो कभी मान.... बनकर |यह तपस्या ही नहीं भरे परिवार की चिंदी करने की औकात वाली है ... इन्हें यह गम नहीं कि घर कौन सा टूटा . ये तो तोड़कर अपना भी घर इठलाती है |

जय हो