बुधवार

शर्म इनको है मगर आती नहीं

जय हो

ये दलाल है और इनको राज्य के मुख्यमंत्री भी जानते है की ये कितने बड़े दलाल है ! दरअसल दलाली इनका पेशा नहीं वह तो विरासत में मिली है ! इतिहास गवाह है कि इन्होने अपने इस धंधे को कभी कमज़ोर नहीं होने दिया ! सुबह से लेकर शाम तक बस एक सूत्री कार्यक्रम ... दलाली ! देखना है तो बस एक बार इनके साथ सचिवालय घूम आइये ! मस्का लगाना और विद्रूप हंसी ... आप को यकीन शायद नहीं हो इनके बदन से बासआती है तो दलाली की ! वैसे इसमें इनका दोष नहीं है ! रामायण गीता और महाभारत देखते समय बच्चा राम या लक्षमण या फिर कृष्ण की भोमिका में खुद को देखता है और कमज़ोर बच्चे को हमेशा रावण या शकुनी बना देता है ! पर उसने तो राम की मर्यादा की चादर ओढ़ लिया इनके हिस्से में शकुनी की टेढ़ी चाल , विद्रूप हंसी , बदबूदार भाषा , और चमचा संस्कृति ही रहा सो इन्होने उसको ही अपनाया और आज उसी पर चल रहे हैं !

अभी एक पत्रिका है उसने इनके बारे में एक सच्ची बात छाप दिया ! भाई साहेब परेशान ! पर अचानक उनके अन्दर शकुनी ज्ञान आया और पत्रिका में छपे आलेख को अपना सम्मान पत्र समझ लिए और तब से खुश है !

जय हो