सोमवार

दिले बेरहम पत्रकार पार्ट एक

जय हो




विचित्र शहर के सम्पादक की गाथा लम्बी है और मै यह नहीं चाहता कि आप बोर हो जाएँ सो मैंने अब कहानी का रुख एक ऐसे पत्रकार की तरफ कर रहा हूँ जिसने पत्रकारिता में महिला प्रेमी होने में सम्पादक को पीछे छोड़ दिया है ! यह भी अब सम्पादक की स्थिति में आ गया है पर स्नेहा के सानिध्य में ऐसे डूबा है की इसके अन्दर का मटुक सामने आ गया है ! अब आपको सीधे कहानी पर ले चलते है ... भाई को इन्फेक्सन कब लगा यह तो भाई भी नहीं जानता पर जीविशन रोड में काम करते हुए गिन्जन की आदतों ने इसे भी कामुक बना दिया था ! आपको यहाँ बताते चले की गिन्जन सर भी सम्पादक के बहुत बड़े मुरीद रहे और यही कारण रहा कि सम्पादक ने कई बार इन्हें भी फ्रेशर्स भेज सम्मानित किया है !और बाद के दिनों में विचित्र शहर में जब झाजीवा का चैनल आया तो गन्धर्व प्रेमिका के साथ गिन्जन को भी सम्पादकवा नौकरी देने में सफल रहा !

अब इधर उधर नहीं भटकेंगे ... कहानी बताही देते है ! तो भाई पहले दिल्ली में था और सीधे जिविशन रोड आकर टीवी में गिरा ... नौकरी मिल गयी ... जुगाड़ शुरू ... पहले खबर छापने के लिए पांच सौ रुपया फिक्स किया और बाद में ... समझ ही गए होंगे ! तो भाई को पता चला की बिना गर्दन वाले पत्रकार भाई साहब का समय बदल गया और वे समय को पकड़ लियें है सो समय को पाने के लिए भाई ने काफी मेहनत की नौकरी बिना गर्दन वाले पत्रकार जी ने इनको दे दिया पर शर्त ... जुगाड़ ... समझ गए ना ! और भाई का काम बदल गया पहले जुगाड़ ... इसी दौरान सरकार बदली ... विचित्र शहर की गद्दी जात के ही नेता को मिल गया अब का चाहिए ... चारो जगह लड्डू ... दो हाथ में और दो .... ? भाई का समय बदला ... ऐसा बदला की भाई धराम से गिरा ... सीधे भक्ती चैनल वाले साहब के घर ... मज़ा आगया यहाँ तो बिना गर्दन वाले साहब पत्रकार ही सब थे ... ले फिर जुगाड़ ... ऐसा जुगाड़ की इन्द्र भी परेशान ... अरे सब विचित्रे शहर में मिलेगा कि कुछ उपरो ... कैसे छप्पर फार के दिया है हो ... हई रे बाप ... साथे देखे थे चिड़ियाँ खाना में ... एलानियाँ हो ... विचित्र शहर के विशेष जी तो कई बार मुंह में पानी भर के बोले भी ... पर खिलाड़ी जी तो आना जाना शुरू कर दिया था ... सा ............ बभना हई हो ... ! पर सब हाथ मलते रह गए ... पर भाई ने निष्ठां दिखाई छाप्दिया मालिक से लेकर पूर्वज के नाम पर खुलने वाला चैनल में साथे ... देख पड़ोसन जल मरे तो मर जाओ ! तो खेल कबूल ... कबूल कबूल !

जय हो

मंगलवार

एक शीर्षक दें... पार्ट थ्री

जय हो




वी टी यानी विचित्र शहर के सम्पादक के लिए दुनिया बहुत ही छोटी है ... जैसे ... उसे बड़ा विस्तरा चाहिए ... दोनों ओर... सुरा और सुंदरी ... वह भी सुडौल ... बोतलें भी बड़ी चाहिए बिलकुल ... सामंता की तरह ... यह भी अपना चेहरा बड़ा रखता है ... इदी अमीन की तरह ... यह बिस्तर पर उन फ्रेशर्स से सलूक भी उसी तरह करना चाहता है ... और यह सब वह इसीलिए करना चाहता है ताकि विचित्र शहर में वह अपने आपको शैतान साबित कर सके ! अक्सरहां रात को ओवर कोर्ट और चेहरे पर तिरछी टोपी डाल सिगरेट का कश लगाता हुआ घूमता है ... झूठी कहानी सुनाना शगल है... अपने कुकृत्यों को सुनाने के लिए पार्टियां दिया करता है ... और उस पार्टी में अपने नए कुकर्म का बखान करता है... जैसे उसने एक जंग जीत ली हो ... धंधा और धन्धेवाज़ उसके साथी है ... वो भी इसी तरह की कहानी सुनाकर वेताल पचीसी दिखाते हैं ... यह सब विचित्र शहर के आई टी ओ की पास होता है ... आपको बता दूं इस विचित्र शहर में एक आई टी ओ भी है और इसी आई टी ओ से ब्लोक की तरफ जाने वाली सड़क पर यह वह सब कर चुका है जिसे मानव समाज में हैवानियत कहा जाता है !

बहरहाल अब कहानी ... पार्ट थ्री !



विचित्र शहर ... विचित्र सम्पादक ... विचित्र दुनिया ... दुनिया ऐसी की जिसमे सिर्फ जिस्म और धोखा बिकता है .... खरीददार भी है ... उन खरीदारों में मुंहमांगी कीमत लगाने वाला यह सम्पादक भी है !अचरज की बात है की इस सम्पादक ने आज भी बनियान पहनने की आदत नहीं डाली ... और तो और वह ... वह वो भी नहीं पहनता है ... वजह सबको मालूम है ... दिक्कत नहीं ... आराम से सबकुछ .... आप यह सोच रहें होंगे की मै इतना कैसे जानता हूँ ... तो सच यह है की यह एक कल्पना है ... उस बधस्थल की कल्पना है ... जहाँ से लौटने के लिए अस्मत गवानी पड़ती है ... सिर्फ यह कहानी है ... इस कहानी के पात्रो को पहचानने की कोशिश नहीं होनी चाहिए ! यह निवेदन है पर आपका मन नहीं माने तो किसी भी ऐसे पुरुष को अपने मानस पटल पर लाइए और उसे कहानी का पत्र बना कर पढ़िये और मज़ा लीजिये ... वह मज़ा नहीं जो सम्पादक लेता है ... शर्मिंदगी का मज़ा ... यह तो सिर्फ आइना दिखाने की कोशिश भर है ताकि कोई इस लाइव समाज में ऐसा करने की जुरर्त ना करे !



क्षमा ... कहानी से भटक गया था !मेरा सम्पादक कविताएं भी लिखता है ... दूसरों के चोरी का ... शब्दों का हेरफेर में माहिर है... इस मामले में वह अपने को रोबिन हुड मानता है ... आप पकड़ लिए तो ठीक नहीं तो वाहवाही दीजिये ... तुम्हारे गेसू ... तुम्हारी अचकन ... दो बूंद ... बस इतना ही ! असल में कवि बनाना तो मजबूरी थी इससे फ्रेशर ... जाती है ... ऊपर का असर है ! बात बनती गयी और सम्पादक... का व्यवसाय बढ़ता गया ... कभी मो....तिहारी ... कभी ... रां... ची.... खेल चालु आहे ....!विचित्र न्यूज़ का दफ्तर तो फ्रेशर की कबूतार्वाजी के लिए फेमस हो गया ... दोस्त आते ... पैमाना ... खनकता रहा ! पर बात उस दिन बिगड़ गयी... !



यह फ्रेशर नहीं थी ... यह तो पहले से ही तेज़ थी ... सम्पादक की नब्ज पकड़ चुकी थी ... एंकर आते ही बन गयी ... विचित्र शहर के लोंगो ने विचित्र न्यूज़ में देखा ... क्या बात है हो सम्पादकवा त फिरो ले आयल ... अच्छा त अबकी इहे इनकर सब खेल बिगाड़ी .... जाय द ... छुछुन्नर बा ...!सचमुच खेल की शुरुवात हो गयी थी ! न्यूज़ पढ़ाने से पहले सम्पादक के चैंबर .... चैंबर अन्दर से बंद ... घंटो बाद निकलती तो सम्पादक के चेहरे पर तेज़ ... आखों में नशा ... एंकर भी मस्त ! सम्पादक ज़िन्दगी को बूंद बूंद जी रहा था ... और एंकर ... उसके तिजोरी से बूंद बूंद निकाल रही थी ... दोनों खुश ... पर जल रहा था कहीं ... किसी के सिने में ... वह कोई एंकर का प्रेमी नहीं ... वह तो सम्पादक की गन्धर्व बंधन की स्वामिनी थी ... धधक रहा था उसके कलेजे में ... ! पर सम्पादक तो नयी ज़िन्दगी के रस का आनंद में डूबा हुआ था ... अब किसकी चिंता ... जब तक एंकर है तभी तक ज़िन्दगी का मज़ा है ... पहले प्यार ... अब .... कहीं एंकर छिटक गयी तो ... और एक दिन सम्पादक ने फोन किया .... हेल्यु ... कहाँ हैं आप जी ... आपका तो फोन नहीं आता है तो .... समझ नहीं पाएंगी .... क्या पापा ... अच्छा ... कोई बात नहीं ... कब लेना है स्कूटी ... नहीं जी ... हेल्यु ... मै सुन रहा हूँ ... बाज़ार से क्यों जी ... लोन मै दे दूंगा ... पक्का... बिलीव करियें ... चु चु चु ... मच मच ... हेल्यु ... कल सुबह ही आइये ... छछूंदर की तरह आवाज़ ने वहाँ लोंगो को चौंका दिया ... अरे ...देख त छुछुन्नर कहबा से आगैल ह ... देख रे देख बहते छुछुवा ता.. ! सम्पादक चैंबर से बाहर निकला ... छ्छुन्नर की आवाज़ बंद ... साफे बंद ... नौकर भी समझ गया ... सम्पादकवा आवाज़ निकालत रहे ... रे छोड़ ... कब सुधरी पते नइखे ... जाय दे !

तीखी धुप विचित्र शहर के लोग घरो में दुबके थे और सम्पादक स्कूटी के लिए एंकर को चैंबर में लों दे रहा था ... फ़ाइल पर साइन किया और एवज में तीस हज़ार ... अच्छी कीमत लगाईं सम्पादक ने ... स्कूटी आ गया ... पर स्कूटी की पार्टी ... खेल शुरू ... एंकर गायब ... चौबीस घंटे से गायब ... सम्पादक भी गायब ... स्कूटी भी गायब ... विचित्र न्यूज़ में हडकंप ... माँ पापा दोनों ने विचित्र न्यूज़ के ऑफिस में ... लाओ लाओ मेरी बेटी कहाँ है ... कहाँ है सम्पादकवा ... लों काहे दिया ... स्कूटी काहे दिया ... संपादक बनता है घुसारे देंगे ...! बोलती बंद ... घिघ्घी बंध गयी मातहतो की ... अब का होगा हो ... इ सा ...ऐसा करता है की लगता है हम सब दलाले है का ... ऐ सर ... ठीके बात है ... चुप ... बोलिहो भी मत अभिये बाप महतारी फाड़ देगा ! पर सम्पादक असर विहीन ... रसप्यार में डूबा ...! अगले दिन ... सुबह के दस बजे ... एंकर अस्त व्यस्त विचित्र न्यूज़ के दफ्तर में आती है ... मेकप रूम में घुस जाती है ... फिर निकली चेहरे पर सुकून .. गर्वीला गर्दन तन गया ... मातहतो को देखि मुस्क्रुराई ... स्कूटी से चल दी ... आज भी एंकर आपको स्कूटी से विचित्र न्यूज़ में दिख जायेगी !

जय हो

शनिवार

एक शीर्षक दें - पार्ट टू

जय हो




तमाम बाते ... तमाम आरोप ... बावजूद विचित्र शहर का यह सम्पादक आज भी वही कर रहा है ... वही सोच रहा है ... जिसे सभ्य समाज में गलत माना जाता है ! आज भी उसकी सोच में लडकी ... कामुकता ... शराब ... मोबाइल पर चिकनी चुपड़ी बातें ... ज़िन्दगी का हिस्सा है ! थोडा भी अफ़सोस नहीं कि गांधी के देश में औरत और लडकी सम्मान में सबसे ऊपर हैं ... राह चलती हर औरत इस सम्पादक के जेहन में वेश्या है या बदचलन है जिसे पैसो के बल पर ... धोखे में रख कर ... यह पाना चाहता है ! साफ़ कपड़ो में रहने वाला यह सम्पादक विचित्र शहर के नामी गिरामी के साथ अपनी इज्ज़त बचाने में लगा रहता तो कई बार उनके नाम पर दलाली कर लेता ! गाडी पर प्रेस का मुहर लगा कर चलने वाला यह सम्पादक कितना नापाक है ... उसके इरादे कितने खौफनाक है कि उस विचित्र न्यूज़ में काम करने वाली उन लड़कियों से पूछिए जिसने चप्पल भी इस पर तान लिया था ! अपनी बेटी की उम्र की लड़कियों से इश्क फरमाने वाला यह सम्पादक सच पूछिए तो पत्रकारिता के नाम पर कोढ़ है !



अब कहानी ... बारिश पूरी जवानी पर थी ... रह रह कर मेघ के गर्जन ... और हवाओं की तेज़ लपट से कोई घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था ... बावजूद पत्रकारिता के जूनून में वह घर से निकली ... विचित्र न्यूज़ के दफ्तर पहुंची ... सुबह के सात बजे थे ... दरवाजे पर चपरासी खड़ा था .... लडकी पूरी तरह भींग चुकी थी ... हाथ में छाता के बावजूद वारिश के बूंदों ने उसे कहीं नहीं छोड़ा था ... चपरासी ने कहा -बौवा भींग गेलः कोई बात ना उपरे वाला रूम में चल जा पंखा चला के कपड़ा सुखा लिह ... कोई अय्थिन त बता देबूवा...!चपरासी का अपनापन ने भींगी लडकी को रहत दी और वह विचित्र न्यूज़ के पहले तल्ले पर बने एक मात्र कमरे में चली गयी और पंखा चलाकर बैठ गयी !



रह रह कर बादलो की गडगडाहट ... तेज़ धार ... पूरा विचित्र शहर पानी पानी हो गया था... सड़के पानी पानी .... सड़को पर सन्नाटा ... लडकी कमरे में बैठे सोचने लगी ... नहीं आना चाहिए .... इतनी बारिश पता नहीं कोई आयेगा भी नहीं ... शायद न्यूज़ नहीं चलेगा ... फालतू आ गयी ... अच्छा बारिश रुकते ही घर चली जायेगी ! वह उठकर कमरे में टहलने लगी ... शीशा ... खुद को निहारने लगी ... चलो अभी स्ट्रगल का दौर है ... एक दिन ... टीवी पर वह न्यूज़ पढ़ेगी ... पूरा देश उसे पहचानेगा पी एम से सी एम तक ... और तभी सम्पादक की गाडी आकर रुकी ... चपरासी दौड़ा ... जी हजूर आ गेल्थिन ... ! और कौन कौन आया है ... आज न्यूज़ नहीं चलेगा क्या ... सुर्खियाँ के लिए एंकर कौन है .... चपरासी ने कहा जी हजुर , एंकर बौवा त आयल हथिन ... वारिश में भींग गेल्थिन हे बेचारी ... उपरे वाला कमरा में कपड़ा सुख्वीत हथिन ... बुला दियो का हजूर...?



विषैले विषधर की तरह सम्पादक की आँखे चमक गयी ... मन में कामुकता का उन्माद छाने लगा ... उसके अन्दर का राक्षस फुंफकार मारने लगा ... चेहरे की कुटिलता को चपरासी नहीं समझ पाया ...सम्पादक ने चपरासी को सौ रूपये निकाल कर दिए और विचित्र शहर के रेल स्टेशन के पास जाकर मंदिर के पास से फूल लाने को कहा ... चपरासी निकल गया ... मौक़ा ... फिर नहीं मिलेगा ऐसा मौक़ा ... मौक़ा पे मौक़ा ... दबे पाऊँ ... शातिर चीते की तरह झपट्टा मारने ... सीधे ऊपर पहुँच गया ... अरे राम ... लडकी अकेली ... सम्पादक ने बिना कुछ कहे उसे अपने आगोश में लेने की कोशिश की लडकी सन्न रह गयी ... जोरदार ... पूरी ताकत से दे दिया एक तमाचा ... सटाक की आवाज़ गूंज गयी ...! न्यूज़ कैंसिल ... सम्पादक ने ... चेहरे को सहलाते कहा - मै तो दोस्ती करना चाहता था ... तुम गलत समझ गयी ... लडकी रणचंडी बन गयी ... दांत पिसते बोली ... दोस्त अपनी बेटी को बनाओ ... उस दिन और आज का दिन ... आज भी कसक है सम्पादक के सीने में... वो मेरी नहीं हो पायी... कई बार उस लडकी को फोन भी किया पर मामला फिट नहीं बैठा ... लडकी खुद्दार थी ... और आज भी है !



यह सिर्फ एक घटना नहीं ... एक कल्पना है सम्पादक के करतूतों का ... वह क्या कर सकता है उसकी एक बानगी है ! मानस पटल पर सम्पादक को लेकर जितनी दरिंदगी हो सकती है ... वो कर सकता है आज सोच रहा हूँ ... उसके चेहरे पर ... कुटिलता के साथ मासूमियत ... सम्पादक ... कामुकता में अँधा हो जाता था ... उस दिन तो उसने हद कर दी ... विचित्र शहर के सबसे फेमस गर्ल्स कालेज की पत्रकारिता की छात्रा का जन्म दिन मनाया और फिर छी छी ...! कभी कोई अपराध बोध नहीं ... एक नहीं कई कहानियां ... अब तो शर्म भी उसको आती नहीं ... विचित्र शहर का यह सम्पादक ... आज भी इसी फिराक में रहता है... और उसे इस अपराध में सहयोग काल भैरब भी करते है ... !



अगले अंक में पढ़ियेगा ... स्कूटी ... लोन ... और निशा







जय हो



शुक्रवार

सब देखते ही रह गए और ...?

जय हो



इसे कहते हैं दोस्ती ... ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे ... भले ही दलम के दलपति के साथ धोखाधड़ी हो जाय ... है ना इसे कहते हैं जान से ज्यादा प्यारी दोस्ती ... इसीलिए जब राजगीर में राजा घोड़ा युक्त तांगा से चल रहा था तो बॉस ठुमुक ठुमुक कर राजा के साथ राजधानी से राजगीर तक का यात्रा वृत्तांत सूना रहा था ... राजा ने कहा की... आप जैसा कोई मेरे ज़िन्दगी मी आये तो बात बन जाय ... बॉस की ठुमकती चाल पर उसके साथी मन ही मन जल रहे थे .... सा ...... अभीतक आदत नहीं गयी है ... दल्ला है सा... ! खबर दलपति के पुरानी हवेली भी पहुँच गयी कि तालीमास्टर फुदक रहा है ... राजा के साथ उनकी गाडी में राजगीर की यात्रा कर लिया है ... दलम के दलपति की टिपण्णी ... पिता पर पूत .... ? अब यकीन ना करके हो ... एक दमे सा... खतमे बा... जाय द... अब आई नु त कुकुरवा नाहित दौरा दिहे स ! लैकियों सबके भेजे ला कारे ... ओकरा नाहित का नाम रहे रे ... उ भडुवा के ... आज कल कहाँ बा एक दिन दिल्ली में घरवा पर आयल रहे ... ओकरे नाहित इहो ... का रे उ कहाँ बा ... ओकर गोतिबा ... घुसे मत दिहे ...




दरअसल बॉस को पाला बदलना जरुरी हो गया था ... दलाली बंद ... अधिकारी डर से किसी का भी फ़ाइल बढ़ाने से पहले जांच लेता था .. पत्रकार का नहीं हैं ना ... दलालवा का है का ... जाय दो यार उपरे से मना हो गया है !काम बंद .. राजा के घर जाने वाला कैमरा बंद ... विज्ञापन बंद ... रेस्टुरेंट वाला विज्ञापन से कितना दिन .. उहो विज्ञापन के बदले खाना फ्री ... जात जमात के दरवारी भी बात बंद कर दिए ... दिन खराब हो गया ... रात से नींद गायब ... राजा के घर की चाय ... बिस्किट ... ना अब नहीं आ सीधे पहुँच गए राजा के सामने ... तेरे घर के सामने एक घर बनाउंगा.. राजा मुस्कुराए ... दाहिने ... बांयें हथेली को मिलाये ... अरे नाराज़ कब थे उ तो आप ही इधर उधर कर रहे थे ... ! राजा भी भारी खिलाड़ी ... राजा भी इतने दिनों के अन्दर पुरानी हवेली के अन्दर खानों में क्या हो रहा है कि जानकारी चाह रहा था ... टार्गेट सामने आ गया ... बजा दिया !

तो अब बॉस को गौर से देखिये ... शाम को राजा के घर से निकलते ही फुदकने लगता है .... राजा की निकलेगी बारात नशीली होगी रात ...! जय हो

गुरुवार

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यह सिर्फ एक कहानी है ... इसके कोई पात्र आपके ज़िन्दगी में दिख जायं तो उन पर ऊँगली उठाने की जरुरत नहीं है बस उनको देखिये और मुस्कुरा दीजिये ... बस इतना ही... उन्हें पहचानने की कोशिश उनकी जिंदगी को तबाह कर सकती है ... आप सिर्फ कहानी पढ़िये और मज़ा लीजिये ... वैसे एक बात बता दूं की यह सिर्फ एक कहानी है ... कल्पना पर आधारित ... सच से कोई सामना नहीं ! तो शुरू करता हूँ एक विचित्र शहर की कहानी ...


इस शहर में सब कुछ है बिलकुल दुसरे शहरो की तरह ... गांधी के नाम पर मैदान है ... एक नदी है जिसे इस शहर के लोग गंगा के नाम से जानते है और यहाँ भी यह नदी शहर के बाहर बहती है
यहाँ भी एक गोल घर है ... एक चिड़ियाँ खाना है ... अखवारों के दफ्तर है ... टीवी चैनल्स के भी ऑफिस है ... जब यह सब है तो लोकल चैनल भी हैं और तभी यह कहानी है ! लोकल चैनल ने टीवी में नौकरी पाने के लिए फ्रेशर लड़कियों के सपने को गहरा कर दिया ... सपने को सच करने का दावा करने वाले लोकल चैनल के बॉस के चैंबर में बेड बिछवा दिया ! हाय रे शहर ... विचित्र शहर के कामुक और दिल फेंक सम्पादक की तो चांदी ... हरेक दिन चादर से लेकर सब बदलने की तैयारी ... भलमचस प्रोडक्शन के बैनर तले ... सबसे पहला ... सबसे आगे ... विचित्र न्यूज़ ... देखना ना भूलें .... चेंबर में बोतल ... खनका ग्लास.. चूडियो की चनक ने बहार ला दिया वीटी ने बिना बनियान के शर्ट को खूंटी पे टांगी और ....
अगले दिन विचित्र चैनल के ऑफिस का नज़ारा बदल गया ... मैडम ... मैडम अब बॉस हो गयी ... कुछ भी करना है मैडम से पूछो ... मैडम भी खुश ... रातो रात मैडम का हुलिया बदल गया ... जींस टॉप ... कभी कभी तो इतना छोटा की अन्दर की बात भी सामने आ जय !

सम्पादक ने नया तरीका अब अपना लिया खुद तो चैंबर में बैठता रहा और काम सिखने आने वालियों को विचित्र न्यूज़ के दफ्तर में ... मौक़ा मिला की वालिओ की ट्रेनिग शुरू ... कपडे ऐसे नहीं ऐसे पहनना चाहिए ... ये तुम्हारे टॉप ठीक नहीं है ... खुद को एक्सपोज करो लोग देखे तो देखते रह जाय ... उफ़ क्या क्या नहीं कहता और धीरे धीरे उनके कपड़ो पर सम्पादक की हाथ ... बुरा मत सोचो .. यह तो तुम्हारी भलाई के लिए कर रहा हूँ ... मेरे पास आज ही विचित्र राज्य के बड़े चैनल के बड़े अधिकारी का फोन आया था ... सब बात हो गयी है ... तुम्हारी नौकरी पक्की ... इधर आओ ... हाथ देखे ... लकीरे काफी गहरी है बहुत ऊपर जाओगी ... !

सांझ ढलने वाली थी और सम्पादक उस दिन खुद ही चैंबर से निकल कर न्यूज़ के दफ्तर में आ गया ... फलां कहाँ है ... चपरासी ने सलाम बजाय और कहा मैडम त उपरे हथी ... मेकप करेला गेल्थिन हे ... संपादक चुचाप ऊपर पहुँच गया ... टूटे शीशे में खुद को निहार रही उस बाला को उसने पत्रकार बना दिया ... पत्रकार बन जब वह नीचे आयी और न्यूज़ पढ़ने के लिए कैमरे के सामने गयी तो बरबस कैमरामैन ने पूछ लिया तबियत ठीक नहीं है क्या ... कोई बात नहीं सम्पादक सर को खबर करते है अपनी गाड़ी से घर छोड़ देंगे ... न्यूज़ के बाद सम्पादक आनन् फानन में स्टूडियो पहुंचा कंधे पर हाथ रखा ... हौले हौले गाडी तक ले गया और गाडी चल पड़ी ... विचित्र शहर की सडको पर दौर पड़ी गाडी ... गाडी में वादे .. कसमे ... और गले में सोने की चेन डालकर गन्धर्व बंधन में उसे ले लिया गया ... तबियत विश्वास के आगे ठीक हो गयी और विचित्र देश में यह सब ... किसी को पता नहीं चला


विचित्र देश के इस शहर में बड़े पत्रकार जब भी आते सम्पादक तीन तेरह कर अपने चेंबर में लाने में सफल हो जाता ... फिर यह चेंबर मयखाना बन जाता ... धुएं और शराब की गंध की खुशबू ऐसी बिखरती की गेस्ट चारोखाने चित्त... शुरुर चढ़ता और सम्पादक डाला की भूमिका में आ जाता ... क्या चाहिए ... अरे नया है ... अभी तो पत्रकार बनाया है ... अपने यहाँ दिल्ली ले जाइए ... जबतक मन करे रखिये और फिर मेरे पास वापस .... ठीक उसी समय मोबाइल की घंटी सम्पादक की बज उठी .... हेल्यु ... अरे तुन .... चूम चूम .. मच मच ... मै तुम्हारे बारे में सोच रहा था सुनो अभी निकल सकती हो सिंह जी है दिल्ली के कौन नहीं जानता ... पी एम भी बुलाते है ... ब्लाक चौराहे पर होटल में आ जाओ ... रूम नंबर ... 0000 समझ गयी ना .. अभी इंटरविउ होगा ... और दल्ल्ला की भूमिका से सम्पादक भडुवा बन जाता !कितनो की सेज सजाई ... कितनो का अबोर्सन कराया ... पर आज भी सम्पादक वैसे ही है


अब विचित्र शहर में एक और चीज है ... यहाँ खेल के लिए स्टेडियम है और वहां एक मोहल्ला भी है ... लड़की दिल्ली ... चारमिनार घूम कर छुट्टियों में आयी ... संपादक ने लड़की को दोस्त से मिलाने स्टेडियम इलाके में लाया .. दोस्त को बहार निगरानी में रख्खा ... और उसे मां बना दिया ! फिर अबोर्सन ... अबोर्सन ... उफ़ विचित्र शहर में ये क्या हो रहा है ... सम्पादक ... खुश है की उसने ... कमीना गिरी की हद पार कर लिया है !

सम्पादक सम्पादक था अब उसके मातहत समझ गए ... लडकी आये ... सम्पादक ने बुला लिया ... मातहत ने लड़की को काम से निकाल दिया ... लडकी काम करती रही पर सम्पादक ने पैसे इस लिए नहीं दिया की यह सेज पर बिछने को तैयार नहीं थी ... सम्पादक आज भी है ... उसका चेहरा देखिये ... बेशर्मी झलकती है ... भडुवा गिरी टपकता है .. आज भी विचित्र देश में यह ज़िंदा है पूछना है तो शमशान में जाकर उनसे पूछिए जो इसके चक्क्कर में आकर अपनी जान से हाथ धो बैठी ... मुझे लगता है इससे अधिक लिखने पर लडकियों की पहचान हो जायेगी ... इतना तक में लडकियों की आत्मा को शांति मिलेगी !


जय हो

बुधवार

बाप के नौकर

जय हो




आज हम आपको जो भी खबर देंगे उसमे किसी का नाम नहीं लेंगे ना ही चैनल का ही नाम लेंगे ! पहचान आपको करनी है कि ताकि आपकी मिमोरी दुरुस्त रहे ! हाँ पटना के नाला रोड में एक ही परिवार में तीन की हत्या की खबर मिलते ही रिपोटर कैमरा मैन, कैमरा और माइक आई डी को लेकर नाला रोड पहुंचा ! यहाँ यह बता दे कि किसी जमाने में यह रिपोटर भागड़ यादव का खुफिया था ... इलाका इससे डरता था ... फिर इसने रिपोटरी करनी शुरू कर दी ताकि पुलिस से बच जाएँ ! हुआ भी वही ... पत्रकार बनते ही सिपाही से दरोगा तक सलाम करने लगे सलाम ख़ुफ़िया जी ... सलाम ! घर तक हिस्सा पहुँचने लगा... घर वाले खुश... शादी किया तो साले को ड्राइवर बना लिया ... यह है रिपोटरी की कमाई !



हाँ तो आपको बता रहा था ... भाई रिपोटर पहले पहुँच गया ... कैमरा शूट करने लगा ... यह अभी पीटीसी करने वाला ही था कि चैनल का अपराध देखने वाला बदना मुहल्ले में रहने वाला रिपोटर वहाँ टपक गया और पहले रिपोटर से माइक मागा ... लह इ का ... तोरे बाप के नौकर बानी का ... कैमरा माइक ले के हम आइल बानी आन पीटीसी तूं करबे ... निकल निकल ... ना त इहे माइक .... घुसा देंगे ... ! घटना कवर करने गए दुसरे रिपोटर भी सकदम्म... अरे इ का हुआ !



खैर मामला इतने से ही नहीं ख़त्म हुआ ... भाई बदना मुहल्ला वाले रिपोटर ने ना आऊ देखा ना ताऊ आ सीधे आर्यन में जा गिरा ... भाई साहब नौकरी दे दो ... और लिस्ट में पहले नंबर पर नाम आया और ... नौकरी पक्की ! सबसे बड़ी बात यह कि दोनों ही एक ही इलाके और भाषा भाषाई है


जय हो

रविवार

दलाल नहीं दल्ला से बचे महुआ के लोग

जय हो महुआ टीवी के बिहार के ब्यूरो चीफ ओम प्रकाश को महुआ प्रबंधन ने चैनल से निकाल दिया है ! ओम प्रकाश महुआ के पटना ब्यूरो के लौन्चिंग से यहाँ काम देख रहे थे ! पर जिस तरह से ओम प्रकाश को चैनल से निकाला गया है उससे साफ़ है कि दाल में कहीं ना कहीं काला है ... वो भी ऐसा वैसा काला नहीं ... समझिये की पीला दाले काला हो गया ! अब सवाल उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि सब काला हो गया ... दिल्ली में बैठे ओम जी के सर्व दुःख नाशक भी कुछ नहीं कर सके और ओम जी की विजली गुल हो गयी ! तो भाई साहब जुबान और .... पर लगाम जरुरी है ! बिना सोचे बोले और ... बिना समझे ...? तो गए ! हाथ से तोता नहीं कबूतरे उड़ ना गया ! लेकिन आखिर महुआ टीवी में ओम जी का जलवा जलेबी की तरह घूम कैसे गया ... साहब तो पहले से ही जलेबी थे इमिरती किसने बना दिया ... लगता है कि गेम मुत्तु भैया ने ही कर दिया ऐसा गेम की ओम क्या मयंक और वीरेंदर भी नहीं समझ पाया ...सब बेचारे .... खाली दाढ़ी बनवाते रह गए ! गोलगपारा में लगने से यही होता है ... कहाँ नहीं रहे ओम भैया ... इ टीवी ... वोइस ऑफ़ इंडिया .. महुआ टीवी ... और मयंक महुआ का पटना ब्यूरो हेड बनकर आगे था पर पद नहीं मिला ... तिवारी जी का टीक घूमा कैसे ... है ना सवाल

साब देखते ही रह गए ... और खेक्ल होकर रह गया ... मुत्तु भैया भी फाढ़ बान्ह लिहिन थे कि चुनाव में लाखो कमाएंगे ... नहीं मानेगा तो ऐसे मारेंगे की चारो खाने चित्त ! धोबिया पछाड़ नहीं गदह पछाड़ .... सब्बे समझ जायेंगे ... रुकिए ना ... खेल की शुरुवात तो अब होगी ... अबतक तो लौंग खाते थे ... अब ... दिखाना परेगा
कौनो बात नहीं है ओम भाई ... काजल की कोठरी में सब काले हैं ... सब ... चिंता नहीं करना है ... चिंता मत करिए .... जान गए ना मुत्तु भैया और उनके सहयोगी को अरे वही आज स्वतन्त्रता दिवस पर पार्टी चल रही है ... अब ... समर शेष ... उनकी चिता जलाने की तैयारी कीजिये .... पैरवी हुई ना खिलाफ ... कौनो बात नहीं ... धुर बकलेले है का जो मिश्र जी के साथ कन्धा में कन्धा मिला के रो रहे है ... धुर आप भी दिखा दीजिये ... एगो चैनले ले आइये ... सब सलाम करेंगे ... वो भी .. चुनाव है ना ! लेकिन खबरदार ... उ बाला बात किये तो ... सब नाशे हो जाएगा ,,, समझे ना ? ना समझे तो अनाडी है आप बड़े खिलाड़ी है ! लेकिन खामोश मत होइए पी पी पाण्डे के पास जाइए ... उसके पास दाल से लेकर बीबी के सेंत का भी हिसाब है वही कैद है मुत्तु भैया की जान ... पी पी पांडे को देख कर हिलने लगते है मुत्तु भैया ... पापी के पाप ... कहा जाएगा अरे जब उनका नहीं हुआ तो ... याद हैं ना झाजिवा को ठेंगा दिखाकर निकल गया ... भाई बोला माँ बीमार है ... भाई बोला भाभी बीमार है ... खुद बोला बीबी बीमार है ... ठगकर भागा तो मिश्रा जी के पास .. आप उनके कंधे पर सर ... ना ना ना ...! दलाल से बचने की जरुरत नहीं ... तीस लाख नहीं ... तीस करोड़ ... कौन बोला ... बोला कौन ... बिहारी मालकिन वाले चैनल का रिपोटर ... दलाल नहीं दल्ल्ला से बचिये! जय हो

ओम प्रकाश तड़ीपार

जय हो




महुआ टीवी के बिहार के ब्यूरो चीफ ओम प्रकाश को महुआ प्रबंधन ने चैनल से निकाल दिया है ! ओम प्रकाश महुआ के पटना ब्यूरो के लौन्चिंग से यहाँ काम देख रहे थे ! पर जिस तरह से ओम प्रकाश को चैनल से निकाला गया है उससे साफ़ है कि दाल में कहीं ना कहीं काला है ... वो भी ऐसा वैसा काला नहीं ... समझिये की पिला दाले काला हो गया ! अब सवाल उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि सब काला हो गया ... दिल्ली में बैठे ओम जी के सर्व दुःख नाशक भी कुछ नहीं कर सके और ओम जी की विजली गुल हो गयी ! तो भाई साहब जुबान और .... पर लगाम जरुरी है ! बिना सोचे बोले और ... बिना समझे ...? तो गए ! हाथ से तोता नहीं कबूतरे उड़ ना गया ! लेकिन आखिर महुआ टीवी में ओम जी जलवा जलेबी की तरह घूम कैसे गया ... साहब तो पहले से ही जलेबी थे इमिरती किसने बना दिया ... और लगता है मुत्तु भैया की औकात भी ढीली पद गयी है बेचारे बचा भी नहीं सके .... खाली दाढ़ी बनवाते रह गए ! गोलगपारा में लगने से यही होता है ... कहाँ नहीं रहे ओम भैया ... इ टीवी ... वोइस ऑफ़ इंडिया .. महुआ टीवी ... पर तिवारी जी का टीक घूमा कैसे ... है ना सवाल


ओम भैया भी फाढ़ बान्ह लिहिन है ... ऐसे मारेंगे की चारो खाने चित्त ! धोबिया पछाड़ नहीं गदह पछाड़ .... सब्बे समझ जायेंगे ... रुकिए ना ... खेल की शुरुवात तो अब होगी ... अबतक तो लौंग खाते थे ... अब ... दिखाना परेगा




कौनो बात नहीं है ओम भाई ... काजल की कोठरी में सब काले हैं ... सब ... चिंता नहीं करना है ... चिंता मत करिए .... उनकी चिता जलाने की तैयारी कीजिये .... पैरवी हुई ना खिलाफ ... कौनो बात नहीं ... धुर बकलेले है का जो मिश्र जी के साथ कन्धा में कन्धा मिला के रो रहे है ... धुर आप भी दिखा दीजिये ... एगो चैनले ले आइये ... सब मादा करेंगे ... वो भी .. चुनाव है ना !

लेकिन खबरदार ... उ बाला बात किये तो ... सब नाशे हो जाएगा ,,, समझे ना ?



ना समझे तो अनाडी है आप बड़े खिलाड़ी है !

जय हो

गुरुवार

परचम लहरायेंगे नवेंदु

जय हो




आखिर नवेंदु ने अपना लक्ष्य पा ही लिया ! इसे कहते हैं लगन ! मन में ठान लिए कि हर हालत ... मौसम ... कैसा भी हो...घुसना है मौर्या टीवी में... और नवेंदु घुस गए ! बन गए मौर्या टीवी के खेवनहार ! नवेंदु को पहले ही मौर्या टीवी में जाना चाहिए था ... जाते भी पर ऐसा ना पोल्टिक्स कर दिया कि नहीं घुस पाए थे ! अच्छा कोई बात नहीं ... घुस गए हैं तो पैर भी पसारेंगे ... और बैठियो जायेंगे ही ! बड़े जुगारु टाइप है नवेंदु ... ऐसे वैसे थोड़े ही बैठेंगे ... बैठेंगे ही नहीं धंस जायेगे कि कोई उठा ही नहीं पाए ... इसीलिए सर के चेहरे पर चिंता की लकीर ... पांडेवा.. की भी ... वाली है ... सारा ज्ञान गुड गोबर कर देंगे ...
बड़ा छांटते रहते थे कि ... इ जानते ही नहीं है कि किदवई पूरी से कृष्णापूरी तक एक सड़क नहीं आती है और जिस रास्ते से चलकर आये हैं ... गुड गोबर कर दिए ... हट बकलोल


हाँ तो सायबान ... अब मौर्या टीवी पर गायन होगा ... विरहा ... चैती ... सोहर से लेकर विदाई तक के गीत वो भी बिलकुल ठेठ अंदाज में ... खासकर इस ख़ुशी में तो...रात ही हो गया ... झाजीवा का चैनल जाय तेल लेने ... पाहिले जमकर सोहर ...


बेचारा अग्रवाल भी निजात पाया ... जब ना तब ... ऐ सर सोहर सुन लीजिये ... आआअ रे रे रे .. जब से ललनवा ... आआआ रे ...
पक गया था कान .. ऐसा खखोड़ पार्टी कहीं नहीं देखे होंगे ...
वैसे एम कुमार जी आपको चिंता करने जरुरत नहीं ... इ पूरा बाल मूंछ रंगते है ... सफ़ेद नहीं दिखता है ... !

चलिए नवेंदु जी का पुनर्वास हो गया झाजीवा ने जस ले लिया ... समय से खराब हुआ समय अब ठीक हुआ है ... ऐसे ही होता है ... अब तो पढ़ाने का अनुभव भी आ गया है ... रात में काम ना करने वाले के लिए जोखिम बनकर ज्वाइन कर लिए ... एम कुमार ने परिचय कराया .. इ हैं ... विद्वान् पत्रकार ... अब आपलोंगों के बीच ... राजनीति देखेंगे ...ले बलैया .. जानते है सब का समझा .. दिन भर .. कैटरीना को ही देखेंगे ... धत !

तो बंधू .... सब खुश है ... सब झाजीवा ... अपना आदमी आ गया है ... इ कहियो केकरो हैं का कि पेट ठोक रहे है... अरे भाई इहो बीच में छेद वाला सीडी हैं ...


जय हो

बुधवार

बिहार में लॉन्च होगा एक और नया चैनल इंडिया लाइव

जय हो




बिहार से एक और नया चैनल लाने की तैयारी लगभग पूरी हो गयी है ! इंडिया लाइव नामके इस चैनल को कोलकाता के एक बड़े बिजनेस ग्रुप ला रहा है ! इस खबर से झाजी के चैनल के पत्रकार और गैर पत्रकार को ठंडी सांस लेनी चाहिए क्योंकि यह बिजनेस मैन पहले मौर्या टीवी खरीदने की

कोशिश किया था ! इस बिजनेस ग्रुप के लोंगो ने आकर झाजी के चैनल का मुआयना भी किया था और चैनल की कीमत जितनी लगाई उससे झाजी और उनका सुनील अग्रवाल बिदक गया !पता ही नहीं था की कौड़ियों के मोल बताएगा !

पर यह सच है कि झाजी और उनके नए पुराने साथी जो दावा करे पर इस चैनल की कीमत आज की तारीख में दो अंको में भी नहीं है ! अब इन बातो को छोड़ा जाय ... तो बंधू बिजनेस मैन और उसके साथी ने इंडिया लाइव को बिहार से लांच करने का फैसला किया है और बिहार विधान सभा चुनाव के पहले यह दिखाई देने लगेगा ! अब इस चैनल के हेड के तौर पर बिहारी मूल के एक पुराने पत्रकार जो इन दिनों नेशनल चैनल में बिहार देखते है को लाने की तैयारी चल रही है पर इस पर अभी फैसला नहीं हो पाया है !

हालांकि आर्यन टीवी से पहले इस चैनल को लांच करने के लिए काम कर रहे टीवी पत्रकार को मुहमांगी कीमत पर ज्वाइन करने की भी तैयारी है तो टेक्नीकल स्टाफ कोलकाता के ही एक चैनल से लाने की योजना फाइनल हो गया है !

अब सोंचे झाजी कि पहले से ही विज्ञापन नहीं मिला और अब दूगो और आ रहा है ... नाशे करेगा का !



जय हो

मंगलवार

विजुअल चोर स्ट्रिंगर

जय हो
पहले चैनल वाले या फिर उनके ब्यूरो चीफ ही विजुअल की चोरी करते थे पर आजकल विजुअल चोर स्ट्रिंगर का चलन बढ़ गया है ! अभी तीन दिन पहले की एक खबर को लेकर बिहार के बेगुसराय के साधना चैनल के रिपोटर ने जिला के ही एक नेशनल चैनल के स्ट्रिंगर पर अदालत में विजुअल चोरी का मामला दर्ज करने का फैसला किया है !
मामला यह है कि पांच अगस्त को बेगुसराय में एक महिला की मौत सांप के काटने से हो गयी ! महिला के परिजनों ने डाक्टर के यहाँ ले जाने की वजाय ओझा गुनी का सहारा लिया ! मृत शरीर को डंडे और थाली लगाकर उसे जीवित करने में जुटे रहे ! इस पुरे वाकये को साधना के जिला रिपोटर प्रभाकर कुमार ने शूट कर लिया और छह अगस्त को यह खबर साधना ने दाब कर चलाया ! बस क्या था नेशनल चैनल ने अपने जिला रिपोटर से विजुअल की मांग की ! यहीं आतें हैं विजुअल चोर स्ट्रिंगर संतोष कुमार ! इस स्ट्रिंगर ने प्रभाकर कुमार के विजुअल चुरा कर इंडिया टीवी , स्टार न्यूज़ और एनडीटीवी को भेजा ! इंडिया टीवी ने विजुअल को ब्रेकिंग न्यूज़ करके खूब चलाया और अपने पटना के रिपोटर नितीश चन्द्र को विजुअल के लिए धन्यवाद दिया ! लेकिन अब साधना न्यूज़ ने प्रभाकर कुमार को आदेश दिया है कि वे सारे उन चैनलों पर मामला दर्ज कराएं जिन पर यह खबर विजुअल चुरा कर दिखाया गया है !
अब प्रभाकर कुमार ने बेगुसराय कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का फैसला किया है ताकि चोर को चोर कहा जा सके |

जय हो

शनिवार

सस्ती कीमत महंगे पत्रकार

जय हो

इस खबर को जानने के बाद पत्रकारों के ऊपर से आपका विश्वास टूट जाएगा...  उनकी खबर पर आप कभी यकीन नहीं करेंगे...   ये पत्रकार खुद अपनी कीमत कैसे लगाते हैं ... यह जानकार आप पत्रकारों को किस नज़र से देखेंगे ? चलिए आपको लाल बुझ्क्कर के चक्कर से मुक्ति देते हुए सीधे खबर पे आते हैं | जेडीयू को छोड़कर पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह लालू यादव की पार्टी में शामिल होने के लिए छपरा में एक बड़ा जलसा का आयोजन किया और इस जलसे को न्यूज़ चैनलों पर दिखाने के लिए कई लोगो को जात के पत्रकारों को जमात बनाने का फरमान जारी हो गया ! पटना के पत्रकारों को इसके कवरेज के लिए मोटी रकम के पैकेट पहुंचाए गए ... साड़ी सुविधा छपरा में देने के लिए वादे हुए हैं ! मोटी रकम( एक लाख )  सिर्फ उन्ही चैनलों के दफ्तर के बॉस तक पहुँचाया गया है जिनके पास ओवी वैन की सुविधा है ! विना ओ वी वैन वाले चैनलों के लिए वहाँ आनेपर पचास हज़ार देने का वादा किया गया है !

अब आप पूछेंगे कि भाई पत्रकारिता को कोठे पर बिठाने वालो की पहचान क्या है ... गौर कीजिये ... खुद पहचान लीजिये .. सिर्फ हिंट दे रहा हूँ ... सफाई कोई नहीं दे सकता ... जो पटना का पत्रकार इसके कवरेज के लिए छपरा गया हो ... ओवी वैन ले गया हो ... खबर नहीं चली हो ... बिना ओवी  वाले का जाना ... अखबार के पटना पटना में रहने वाला  ब्यूरो चीफ सावन में गया तो मांसाहारी ...| वैसे लोकल न्यूज़ वाले रिपोटर की वजाय खुद वहाँ हो तो मामला साफ़ है ! वैसे लालू यादव के पैसे पर जीने वाले पत्रकार तो वैसे भी जाएगा ... भले शर्म को छुपाने के लिए काला चश्मा पहन ले ... लालू के खाने के बाद उसका खाना खाय ... ऐसे की पहचान तो पहले से है पर इस बार पहचान के लिए नितीश कुमार ने भी गेम में हिस्सा लिया है ! अपने सारे कारिंदे को ... चमचा पत्रकार को उस गुट में शामिल कर दिया है ताकि पल पल की खबर सीधे उन तक दिल्ली में पहुंचे !
खेल खिलाड़ी का ... पर खेल रहे है नितीश कुमार , लालू यादव ... और लाखो खर्च किया है प्रभुनाथ सिंह .. पैसा डकारा है जात के जमीनी नेता ने .. जिसके देह से दलाली की बू आती है |

जय हो

बुधवार

चेहरा सफ़ेद क्यों पड़ गया सर... चेहरा काला ही अच्छा था.
















































































































































































































































































































































































































लटकला त गेल्ल बेटा

जय हो

बॉस के खिलाफ तीर तान दिया गया है ! रण बांकुरों को तैयार कर दिया गया है ! एक नंबर वाले राजमहल के हर दरवाज़े पर नोटिस चस्पा कर दिया गया है ... डुगडुगी बजा कर दरबार के हर कारिंदे को चेतावनी दे दी गयी है ... की बेताल को अब राजा अपने कंधे पर लेकर नहीं चलेगा ... चमचई संस्कृति से खुद को राजा ने अलग कर लिया है ... दरबार ... में यह खबर है कि किसी ने भी बॉस को खबर दी तो उसका तेल निकाल दिया जाएगा | राजा का गुस्सा... अरे देवा... देवा रे देवा ... |

हाज़िर  किये गए बॉस के खासमखास ... राजा के सामने ... दोनों ... हाथ बांधे .. हुज़ूर ... आलमपनाह ... आदेश ... | राजा का सीना तन गया ... खबर मिली बॉस को कि बिरादरी वाले दो अधिकारी को राजा ने बुलाया है ... बॉस ने तत्काल आकाशवाणी वाले दूरसंचार का सहारा लिया ... याद आया ... हाजीपुर जाने वाली बस के पीछे लिखा तकिया कलाम ...|
दरअसल अब बॉस संकट में है ... कला संस्कृति और जोड़ने वाले विभाग के दोनों साहेब ने बॉस को हडकाया ... खबरदार जो खबर लेने आये ... विरादरी गया भांड में ... अब बॉस क्या करे ... बॉस के साथी ही साथ नहीं दे रहे है ... क्या करें सब बॉस की वजह से सबपर तलवार लटक गया है ...

चलिए बॉस को सलाह ... एक बार बस स्टैंड जाकर हाजीपुर वाली बस के पिछवारे के बुद्ध का ज्ञान पढ़ कर जीवन पर्यंत दिमाग में बिठा लीजिये .... लटकला त ....!

जय हो

सोमवार

एलान मिलेगा पांच सौ

जय हो

पटना से लौंच मौर्या टीवी कर्मियों को इस बार बढ़ोत्तरी के तौर पर पांच सौ रूपये दिए जायेंगे ! एलान है भाई झाजी का ! चैनल के बिहार में नंबर वन हो जाने की ख़ुशी बांटने पटना आये भाई झाजी ने मौर्या में मीटिंग कर रोनी सूरत वाले कर्मियों को कहा कि 500 रुपया बढ़ाने को उन्होंने कह दिया है ! पर इससे सब मौर्या वाले भाई खुश मत हो जाइयेगा |असल में यह बढ़ोत्तरी सिर्फ 10000  रुपया के निचे सैलरी पाने वाले को ही मिलेगा ! यानी आज भी मौर्या टीवी में पत्रकार और गैर पत्रकारों को सरकार द्वारा तय मानदेय नहीं मिलता है ! है ना चकित करने वाली बात ! भाई झाजी महीने में जितना हवाई जहाज पर खर्च करते है उसका दस प्रतिशत भी मौर्या के लोंगो को दे दें तो यहाँ के लोंगो के घर में दिवाली मानाने लगेगी ! पर झाजी पक्के समाजवादी है ! इसीलिए तो उस दिन बोले कि भाई इस चैनल पर प्रतिमाह 60 लाख का खर्च है ! विज्ञापन नहीं है ... ऐसे में कहाँ से दे पैसा ! पांच सौ देंगे वह भी दस हज़ार से कम पाने वालो को !
अब बताइये की 60  लाख का कहाँ खर्चा ! क्या और किसको दे रहें है पैसा ... लीज लाइन वाले पैसा नहीं मिलने के कारण लाइन काट चुके है ... विजली बिल बकाया है ... क्या क्या बताये कि क्या क्या बकाया है ... पर झाजी ने यहीं के खर्चा से घर बनवाया तो खर्चा नहीं होगा ... एम कुमार को ... फर्जी पांडेय को भांजा पर खर्चा ... पत्रकार नहीं रोयेगा तो कौन रोयेगा ... झाजीवा  तो घडियाली आंसू रो रहा है ! अरे चैनल नंबर वन होने की पार्टी देने के लिए पैसा है पर क्रीम क्राइम के लिए वही पांच हज़ार !
सावधान , लेबर कोर्ट की नज़र है और शिकायत भी ... आइसक्रीम पत्रकारों के बच्चे भी खाना चाहते है ... सिर्फ एंकर को खिलाने से नहीं चलेगा भाई झाजी |
जय हो